FEATUREDLatest

Pension Scheme : देश के 35 लाख पेंशनभोगियों को खुशखबरी, EPFO ने बढ़ाई इस सुविधा की समय सीमा

Pension Scheme : देश के 35 लाख पेंशनभोगियों के लिए खुशखबरी है। EPFO यानी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) ने पेंशनभोगियों के लिए जीवन प्रमाण-पत्र जमा करने समय-सीमा अगले वर्ष 28 फरवरी तक बढ़ा दी है।

इससे करीब 35 लाख उन पेंशनभोगियों को लाभ होगा जो कोरोना संकट के बीच इस वर्ष नवंबर तक अपना जीवन प्रमाणपत्र दाखिल नहीं कर पाए हैं।

एक बयान में श्रम मंत्रालय ने कहा कि जो पेंशनभोगी 30 नवंबर तक जीवन प्रमाण-पत्र जमा नहीं कर पाए हैं, उन्हें फरवरी तक हर महीने पेंशन मिलती रहेगी। श्रम मंत्रालय के मुताबिक बुजुर्गों को कोविड-19 महामारी से खतरे को देखते हुए EPFO ने तिथि बढ़ाई है।

वर्तमान नियम यह है कि पेंशनभोगियों को हर वर्ष 30 नवंबर तक अपने जीवित होने का प्रमाण-पत्र दाखिल करना होता है, जो एक वर्षों तक वैध रहता है। मंत्रालय ने कहा कि कोरोना संकट के चलते जो बुजुर्ग अब तक यह प्रमाण पत्र जमा नहीं करा सके हैं, उनकी पेंशन राशि फरवरी तक नहीं रोकी जाएगी।

इसे भी पढ़ें-  को ट्रेनिंग दीजिए, 1 साल का मानदेय हम देंगे- सीएम योगी

उत्‍तराखंड से एक अच्‍छी खबर है। यहां वन महकमे ने 1987 से दैनिक श्रमिक (अस्थायी) के रूप में कार्यरत और 2012 में फारेस्ट गार्ड के पद पर नियमित होने के बाद 2019 में रिटायर वन कर्मचारी को पेंशन नहीं दी। विभाग ने तर्क दिया कि कर्मचारी की नियमित सेवा दस साल से कम है। हाई कोर्ट ने दैनिक सेवा को भी जोड़ते हुए सेवानिवृत्त कर्मी को पेंशन का लाभ देने का सरकार को आदेश दिया है। कोर्ट के इस अहम फैसले से ऐसे मामलों में पेंशन से वंचित वन कर्मचारियों का रास्ता भी साफ हो गया है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति लोकपाल सिंह की एकलपीठ ने मामले को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट के प्रेम सिंह बनाम सरकार से संबंधित निर्णय के आधार पर दैनिक श्रमिक की सेवा को जोड़ते हुए पेंशन देने के आदेश सरकार को दिए हैं। याचिका में दलबीर बिष्ट ने बताया कि 1991 से 2012 तक वह उत्तरांचल वन श्रमिक संघ के प्रदेश अध्यक्ष रहे। जिस कारण उन्हें उच्चाधिकारियों का कोपभाजन बनना पड़ा। विभाग ने उनको नियमित भी उनसे जूनियर कर्मचारियों के बाद किया।

इसे भी पढ़ें-  Katni भीड़भाड़ वाले बाजार में बैल (नंदी) छत से गिरा

यह है पूरा मामला

चमोली निवासी दलबीर सिंह बिष्ट ने याचिका दायर कर कहा कि 1987 में उनकी नियुक्ति वन विभाग में टाइपिस्ट के पद पर दैनिक श्रमिक के रूप में हुई थी। 2012 में याचिकाकर्ता का चयन फारेस्ट गार्ड के लिए हो गया। 2019 में वह रिटायर हुए तो वन विभाग ने पेंशन देने से इसलिए इन्कार कर दिया कि उनकी फारेस्ट गार्ड के पद पर नियमित व पेंशन के लिए आवश्यक सेवा दस साल पूरी नहीं है। याचिका में दैनिक कार्यकाल की सेवा को जोड़ते हुए पेंशन देने की गुहार लगाई गई थी।

इसे भी पढ़ें-  Uttarkashi (Uttarakhand) Tunnel Collapse: सच हुई बाबा बौखनाग की भविष्यवाणी, बौख के पश्वा, माली, संजय डिमरी ने दिया था वचन