निर्मला सीतारमण ने वित्तीय स्थिति को लेकर दिया खुलकर जवाब, कहा- हर क्षेत्र में मजबूती से बढ़ रहे कदम
नई दिल्ली। अर्थव्यवस्था की मंदी, सरकार के राजस्व संग्रह की धीमी रफ्तार और सरकारी खर्च में कमी को लेकर विपक्ष के निशाने पर रही सरकार ने बुधवार को आंकड़ों के जरिये स्पष्ट कर दिया कि इन आरोपों में कोई दम नहीं है। अनुदानों की पूरक मांगों पर लोकसभा में हुई बहस का जवाब देते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार के राजस्व संग्रह में भी वृद्धि हो रही है और सरकारी खर्च भी बढ़ा है।
आइडीबीआइ बैंक को पूंजी देने के सवाल पर भी वित्त मंत्री ने कांग्रेस को घेरते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की वजह से इसकी हालत खराब हुई जिसे मौजूदा सरकार संभालने की कोशिश कर रही है। वित्त मंत्री ने विपक्ष की तरफ से ग्रामीण क्षेत्रों में मांग की कमी और सरकार की तरफ से कदम नहीं उठाये जाने के आरोपों का भी सिलसिलेवार जवाब दिया और कहा कि देश के 400 जिलों में विभिन्न माध्यमों के जरिए एमएसएमई से लेकर अलग अलग क्षेत्रों में नवंबर में 2,39,345 करोड़ रुपये के कर्ज दिए गए हैं।
उन्होंने कहा कि यह सिलसिला अभी जारी है। करीब पांच घंटे तक सदन में चली बहस के बाद 21,246.55 करोड़ रुपये की अनुदान की पूरक मांगे पारित हो गईं। बाद में सदन ने ध्वनिमत से विनियोग विधेयक भी पारित कर दिया। टीएमसी के सौगत राय ने सात कटौती प्रस्ताव रखे थे, जिन्हें ध्वनिमत से खारिज कर दिया गया।बहस में हिस्सा लेने वाले 19 सांसदों के सवालों का जवाब देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि यह कहना सही नहीं है कि सरकार के राजस्व में कमी आ रही है।
सीतारमण ने बताया कि अक्टूबर में सरकार के रेवेन्यू में 15.06 परसेंट की वृद्धि दर्ज की गई है। इस महीने सरकार का रेवेन्यू 97,630 करोड़ रुपये के स्तर तक पहुंच गया। जहां तक सरकारी खर्च का सवाल है, तो उसमें रेवेन्यू एक्सपेंडिचर में 13.61 परसेंट और कैपिटल एक्सपेंडिचर में 37 परसेंट की वृद्धि हुई है। इससे पहले कांग्रेस के शशि थरूर ने बहस में हिस्सा लेते हुए सरकार के रेवेन्यू में कमी की बात कही थी।
मनरेगा आवंटन में कमी के थरूर के ही आरोप का जवाब देते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि साल 2018-19 के बजट में मनरेगा के लिए 55,000 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान लगाया गया था। इसे संशोधित अनुमानों में बढ़ाकर 61,084 करोड़ रुपये किया गया। वर्ष के अंत में वास्तविक खर्च 61,829 करोड़ रुपये का हुआ। उन्होंने कहा कि 2019-20 में अब तक 4.4 करोड़ परिवारों के 6.2 करोड़ लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार उपलब्ध कराया जा चुका है।
सरकारी योजनाओं में लीकेज की बात को सिरे से नकारते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि डीबीटी के जरिये लोगों को लाभ देने का सिलसिला शुरू करके सरकार ने इसकी व्यवस्था ही समाप्त कर दी है। उन्होंने सदन को बताया कि डीबीटी स्कीम लागू होने के बाद से अब तक सरकार को 14,1676 करोड़ रुपये की बचत हुई है। मंदी के वक्त में मांग बढ़ाने के उपाय न करने के विपक्ष के सवालों के जवाब पर वित्त मंत्री ने विस्तार से जवाब दिया।
उन्होंने कहा कि विभिन्न प्रयासों के तहत सरकार ने खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में एमएसएमई को कर्ज मुहैया कराया है। विभिन्न स्नोतों के जरिये अलग अलग मदों में नवंबर में 2,39,245 करोड़ रुपये के कर्ज प्रदान किये गये। जबकि अक्टूबर में 2,52,589 करोड़ रुपये के ऋण दिये गये थे।आइडीबीआइ बैंक में पूंजी डालने के प्रस्ताव पर वित्त मंत्री ने कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार को आड़े हाथों लिया।
उन्होंने कहा कि साल 2008 से 2014 तक फोन पर लोन दिलाने का जो सिलसिला चला, उसकी वजह से आइडीबीआइ बैंक समेत कई बैंकों की हालत खराब हुई। अकेले आइडीबीआइ बैंक का कुल कर्ज 2008 के 82,664 करोड़ रुपये से बढ़कर 2014 में 2,03,376 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। वह भी तब जब तत्कालीन सरकार ने ऐसे कर्जो को छोड़ दिया जो उस वक्त तक एनपीए में तब्दील नहीं हुए थे लेकिन दबाव की श्रेणी में आ गए थे। यही वजह है कि सरकार को अब इस बैंक को वित्तीय मदद उपलब्ध करानी पड़ रही है।
साल 2015 के बाद से सरकार और एलआइसी ने मिलकर इस बैंक में 42,781 करोड़ रुपये डाले हैं। सुप्रिया सुले की तरफ से मुद्रा लोन स्कीम में एनपीए के बारे में पूछे जाने पर वित्त मंत्री ने कहा कि यह कुल कर्जो का 2.52 परसेंट है।एफडीआइ के सवाल पर वित्त मंत्री ने कहा कि जिस रफ्तार से यह बढ़ रहा है उससे स्पष्ट है कि उद्योगों में भय का कहीं कोई माहौल नहीं है। साल 2018-19 की पहली छमाही में देश में 17 अरब डॉलर का निवेश आया था। लेकिन चालू वित्त वर्ष यानी 2019-20 की पहली छमाही में एफडीआइ की यह राशि 20.9 अरब डॉलर तक पहुंच गई है।