Yashbharat Exclusive: किसी हॉरर फिल्म का डाक बंगला नहीं यह है कटनी का उपडाकघर
कटनी। आपने अक्सर किसी हिन्दी हारर फिल्म में भूतहा डाक बंगला तो जरूर ही देखा होगा। झाड़ियों के बीच सुनसान स्थल पर वह इकलौती बिल्डिंग, लालटेन लिए इुए अजीबों गरीब सा केयर टेकर रात में आतीं भयानक सी आवाजें और फिर अंधेरे में सन्नाटे को चीरती कोई भयंकर चीख।
जी हां रामसे ब्रदर्स को ऐसी हारर फिल्म का अगर आपकों प्रत्यक्ष अहसास करना है तो आईये उपडाकघर रबर फैक्ट्री रोड में। वैसे तो अमूमन यह डाकघर बंद ही रहता है लेकिन यदा कदा खुला मिल जाए तो यहां की दशा देखकर निजी कंपनियों के फाइनेंसल संस्थानों की चमक धमक को मुंह चिढ़ाती आज भी 19 वीं सदी की भारतीय सरकारी व्यवस्थाओं की दुर्दशा का अंदाजा हर कोई लगा सकता है।
यूं तो पोस्ट आफिस सर्विस को हाईटेक बनाने मोदी सरकार ने काफी कदम उठाये, इसे मुख्य डाकघर में महसूस भी किया जा सकता है, लेकिन कटनी में ये सारा तामझाम किसी भी उपडाक घरों में क्यों नहीं दिखाई पड़ता समझ से परे है। शहर में कोई आधा दर्जन उप डाकघर हैं। इन सभी की हालत उस डाक बंगले की तरह ही नजर आती है जो हारर फिल्म की स्क्रिप्ट में मेन होते हैं।
झाड़ियों के बीच रास्ता ही गुम
रबर फैक्ट्री का यह पोस्ट आफिर कोई दो दशक पुराना है। लम्बे समय से किराये के मकान में चल रहे इस सब पोस्ट आफिस में एक मात्र कर्मचारी है जो मूलतः हेड पोस्ट आफिस से अटैच किये गये हैं। पोस्ट आफिस सड़क से तो दिखाई देता है लेकिन चारों ओर झाड़ियों के बीच इसका रास्ता ढूंढना कठिन कार्य है। लिहाजा मौजूद कर्मचारी भी सारे काम काज मुख्य पोस्ट आफिस से ही निपटा लेते हैं। अधिकांश ग्राहकों को भी यह पता है अतः वे भी यहां कम ही आते हैं।
याद आती है वह पुरातन परंपरा
यदा कदा एकाध घंटे खुलने वाले इस डाकघर में पहुंच कर यहां की हालत देश की आजादी के पहले के उस डाकघर की तश्वीर सामने पेश कर देते हैं जिन्हे आज की पीढ़ी ने केवल पुरानी फिल्मों में ही देखा होगा। यहां कटी फटी पास बुक मोटे मोटे रजिस्टर में खातों की डिटेल काले रंग की स्याही का अनोखा सील ठप्पा, आदि आदि। सचमुच इसे तो देश की पोस्ट सेवाओं का स्मारक ही बना देना चाहिए।
जहरीले जीव जंतु अक्सर लेते हैं डाकघर की शरण
ऐसा नहीं कि इन सब परेशानियों के बावजूद यहां काम नहीं होता। पोस्ट आफिस में आज भी हजारों ग्राहक बैंकिंग और पोस्ट सेवाओं का उपयोग करते हैं। कुछ घंटे ही सही काम धाम भी होता है। एक अकेला कर्मचारी सारे काम कर लेता है। इस बीच अगर कोई जहरीला जीव जंतु भी डाकबंगले की शरण ले ले तो उसकी खातिरदारी का जिम्मा भी इसे ही निभाना पड़ता है। फिलहाल यहां अतुल शुक्ला बतौर प्रभारी पदस्थ हैं।
कई बार प्रस्ताव गया मगर…
ऐसा नहीं कि इस रबर फैक्ट्री डाकघर को अन्यत्र शिफ्ट करने का प्रस्ताव हेड फोस्ट आफिर से जबलपुर रीजनल आफिर से तक न गया हो मगर इसे किसी भी अधिकारी ने कभी गंभीरता से ही नहीं लिया। अब तो इस उपडाकघर को बंद करने की ही सुगबुगाहट है। वैसे यह कोई आश्वर्य नहीं क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में शहर और ग्रामीण क्षेत्र के ऐसे करीब आध दर्जन उप डाकघर बंद हो चुके हैं अथवा होने की कगार पर हैं। ऐसे में ये डाकघर अब तक मजबूती से डटा है यहीं प्रशंसनीय है।
दरवाजे पर लिख दिया नंबर साहब आएं तो बात करें प्लीज
हम जब उप डाकघर पहुंचे तो यह बंद मिला लेकिन इसके दरवाजे पर एक मोबाइल नंबर लिखा था जिसका मजूमन था कि कृपया इस नंबर पर बात करें। हमने तुरंत मोबाइल लगाया लेकिन तब पता लगा कि यह नंबर भी किसी ग्राहक का ही है जो कई दफे यहां आने के बाद डाकघर के दरवाजे पर अपना नंबर लिख आया था कि जब भी यहां कोई कर्मचारी आये तो फोन लगा ले।
प्रस्ताव भेजा गया है
रबर फैक्ट्री रोड के इस डाकघर को किसी अच्छे स्थान पर शिफ्ट करने के लिए हेड आफिस प्रस्ताव भेजा गया है। अनुमति प्राप्त होते ही यहां की सभी व्यवस्थाएं जल्द की सुविधायुक्त स्थल पर शिफ्ट हो जाएंगी।
– नारायण सिंह,
प्रभारी पोस्ट मास्टर, कटनी
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