तो वजह से महिलाएं छलनी से देखती हैं पति का चेहरा…
धर्म डेस्क। करवा चौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है.
करवा चौथ का त्योहार पति-पत्नी के मजबूत रिश्ते, प्यार और विश्वास का प्रतीक है. कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है. कार्तिक मास की चतुर्थी जिस रात रहती है उसी दिन करवा चौथ का व्रत किया जाता है. इस साल यह व्रत 27 अक्टूबर को किया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस दिन महिलाएं छलनी से ही चांद और पति का चेहरा क्यों देखती है? आइए जानते हैं…
करवा चौथ के दिन छलनी का काफी महत्व होता है. पूजा की थाली में महिलाएं सभी सामानों के साथ छलनी को भी जगह देती है. दरअसल करवा चौथ की रात महिलाएं अपना व्रत पति को इसी छलनी से देखकर पूरा करती हैं. इस छलनी में शादी-शुदा महिलाएं दीपक रख चांद को देखती हैं और फिर अपने पति का चेहरा इसी छलनी से देखती है. जिसके बाद पति उन्हें पानी पिलाकर व्रत पूरा कराते हैं. इस पूरी प्रक्रिया की एक खास वजह भी है. हिंदू मान्यताओं के मुताबिक चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है और चंद्रमा को लंबी उम्र का वरदान भी हासिल है. साथ ही चांद में सुंदरता, प्रसिद्धि, शीतलता, प्रेम और लंबी उम्र जैसे गुण भी हैं. इस कारण से ही शादीशुदा महिलाएं चांद को देखकर इन सभी गुणों की कामना अपने पति के लिए करती हैं.
करवा चौथ का पूजन
करवा चौथ के पूजन में धातु के करवे का पूजन श्रेष्ठ माना गया है. यथास्थिति अनुपलब्धता में मिट्टी के करवे से भी पूजन का विधान है. ग्रामीण अंचल में ऐसी मान्यता है कि करवा चौथ के पूजन के दौरान ही सजे-धजे करवे की टोंटी से ही जाड़ा निकलता है. करवा चौथ के बाद पहले तो रातों में धीरे-धीरे वातावरण में ठंड बढ़ जाती है और दीपावली आते-आते दिन में भी ठंड बढ़नी शुरू हो जाती है.
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