तो न होता अमृतसर रेल हादसा…
रायपुर। अमृतसर हादसे की खबर आते ही लोग सिहर उठे। कुछ ऐसा ही मंजर रायपुर के डब्ल्यूआरएस कॉलोनी का भी था। रावण का पुतला धू-धू कर जल रहा था। बगल के रेल ट्रैक पर मौजूद थी हजारों की भीड़। ठीक इसी समय ट्रैक पर ट्रेन आई लेकिन इंतजाम ऐसा की आनन-फानन में भीड़ से ट्रैक खाली करा लिया गया।
दरअसल यहां भी 2010 में दशहरा मेला के दौरान हादसा हुआ था। इससे पहले भी हादसे आम थे। दैनिक जागरण के सहयोगी नई दुनिया ने जिम्मेदारों को जगाने के लिए खबरों की श्रृंखला प्रकाशित की। जिम्मेदार जागे और भविष्य के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए।
यहां सुरक्षा के इतने पुख्ता बंदोबस्त थे कि ट्रेन की स्पीड मेला स्थल के पास बैलगाड़ी जैसी करने का ट्रेन ड्राइवर को कासन था। शुक्रवार शाम 6:38 बजे डब्ल्यूआरएस कॉलोनी में रावण दहन हुआ, लेकिन इसके करीब दो घंटे पूर्व से ही रेलवे और जीआरपी के जवानों ने मेला स्थल के रेल ट्रैक पर मोर्चा संभाल लिया था।
एक किमी के ट्रैक पर कुछ-कुछ दूरी पर जवान खड़े थे। इनके हाथ में टार्च, सीटी (व्हीसिल) और डंडे थे। रेलवे क्रांसिंग को बंद कर दिया गया था, यहां बड़ी संख्या में जवानों को तैनात किया गया था। ट्रेन को करीब एक किमी दूर रोक से ही बैलगाड़ी की गति से चलाया गया।
जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ रही थी, लोगों को ट्रैक से हटाया जा रहा था, उनके साथ पुलिस जवान भी आगे बढ़ रहे थे। ट्रैन के इंजन के आगे-आगे दो जवान हैंड माइक्रोफोन लेकर लोगों को ट्रेन आने की सूचना का प्रसारण करते हुए दौड़ रहे थे। 120 मिनट में चार ट्रेनों को इसी तरह निकाला गया। काश ऐसे इंतजाम अमृतसर में होते न बच जाती मासूमों की जान।
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