कांग्रेस की कुछ तो मजबूरियां हैं वरना क्यों चलती गठबंधन की राह पर !
नई दिल्ली। विधानसभा चुनाव के लिए बहुजन समाज पार्टी के बाद कांग्रेस की समाजवादी पार्टी से गठबंधन की सुगबुगाहट तेज़ है. आख़िर क्या वज़ह है कि ऐसी पार्टी जो पिछले विधानसभा चुनाव में एक भी सीट जीत नहीं पायी थी, उससे कांग्रेस हाथ मिला रही है. 2008 में सपा ने सिर्फ 1 सीट जीती थी.
दरअसल मध्य प्रदेश में 35 सीटें एससी और 47 एसटी के लिए आरक्षित हैं. ज़ाहिर है कांग्रेस और बीजेपी इन दोनों ही वर्गों को अपने साथ करने में जुटी हैं. इस बीच कमलनाथ की सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से प्रस्तावित मुलाकात ने बीजेपी को परेशान कर दिया है. कमलनाथ से अखिलेश यादव की मुलाकात गुरुवार शाम को होने वाली है. इसके बाद अखिलेश अरुण यादव के साथ लंच करेंगे. एक दिन पहले ही अरुण यादव का सीडब्लूसी में शामिल किया जाना और उसके बाद अखिलेश यादव के साथ उनका लंच महत्वपूर्ण संकेत दे रहा है. आगामी विधानसभा और फिर आम चुनाव के लिए पार्टी की रणनीति कुछ-कुछ साफ होने लगी है. बहुजन समाजवादी पार्टी नेता के साथ राहुल गांधी की मुलाकात के बाद मिले संकेतों से साफ है कि 2018 के रास्ते 2019 का महागठबंधन शक्ल इख्तेयार कर रहा है. इसी के तहत कांग्रेस अब समाजवादी पार्टी के साथ भी समझौते के लिए तैयार खड़ी दिख रही है. हालांकि नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह का कहना है कि ये गठबंधन हाईकमान के निर्देशों के हिसाब से होगा.
प्रदेश में सवर्णों में यादवों का वोट खासा मायने रखता है. प्रदेश में करीब 50 फीसदी आबादी ओबीसी है. यही वजह है कि एमपी में बीते 15 साल में 3 ओबीसी मुख्यमंत्री रहे हैं. चाहें वो उमा भारती हों, बाबूलाल गौर हों या फिर शिवराज सिंह चौहान. देश भर में कांग्रेस के पास कोई बड़ा यादव चेहरा नहीं है. पहले ज़रूर सुभाष यादव हुआ करते थे, लेकिन उनका आधार सिर्फ मध्यप्रदेश में था. अगर मध्य प्रदेश में यादव वोट बैंक की बात करें तो दावा है कि करीब 40 लाख वोटर्स यादव हैं. ऐसे में दोनों ही पार्टिंयां यादवों को नज़रअंदाज नहीं कर सकतीं.प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनावों पर गौर करें तो समाजवादी पार्टी के पास 2003 में सबसे ज़्यादा 8 सीटें रही हैं. जबकि 2013 में एक भी सीट वो नहीं जीत पायी.
छतरपुर ज़िला यूपी के झांसी ज़िले से लगा हुआ है. पूर्व में एक बार छतरपुर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी जीत चुकी है. जानकारों की मानें तो सपा अध्यक्ष मध्य प्रदेश के भिंड, दतिया, मुरैना, छतरपुर, सीधी, रीवा, सतना, कटनी, चित्रकूट सहित करीब एक दर्जन जिलों में पार्टी प्रत्याशी उतारना चाहते हैं.
कांग्रेस की सपा से गठबंधन को कोशिश के बीच बीजेपी का कहना है कांग्रेस की हालत काफ़ी ख़राब है. यही वजह है कि वो क्षेत्रीय दलों की ओर देखने के लिए मजबूर है. चुनाव के बाद कांग्रेस का और बुरा हश्र होने वाला है.अब बीजेपी का दावा अपनी जगह है. अगर कांग्रेस का ये गठबंधन हो गया, तो 2019 के आम चुनाव के नज़रिए से ये काफी महत्वपूर्ण होगा. क्योंकि पार्टी का पहला टारगेट अब जनता का विश्वास जीतने से ज़्यादा बीजेपी को नुकसान पहुंचाने का दिखाई दे रहा है.
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