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महज ‘सेक्युलरिज़्म’ के मुद्दे पर 2019 की जंग कैसे जीतेंगे राहुल गांधी?

 नेशनल डेस्‍क। दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस ने जन आक्रोश रैली की. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी बीजेपी और पीएम मोदी पर जमकर बरसे. उन्होंने आरोप लगाया कि पीएम मोदी आज देश में बढ़ रही नफरत, बेरोजगारी और हिंसा पर चुप हैं. राहुल के निशाने पर नोटबंदी, नीरव मोदी, राफेल डील जैसे मुद्दे रहे तो उन्होने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कर्नाटक चुनाव में बीजेपी नेता बीएस येदियुप्पा पर हमला बोला.

वैसे ये सारी बातें कमोबेश राहुल के हर भाषण में कहीं न कहीं होती हैं. उनका मुख्य उद्देश्य इन मुद्दों को लेकर सीधे पीएम मोदी के बरक्स खुद को रखने की होती है, क्योंकि कांग्रेस की कोशिश है कि यूपीए 3 के राहुल सर्वमान्य नेता बन सकें. तभी कांग्रेस चाहती है कि साल 2019 का लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल ही रखा जाए, ताकि बाकी घटक दल और क्षेत्रीय नेताओं को महागठबंधन के नेतृत्व से दूर भी रखा जा सके.

राहुल गांधी ने जन आक्रोश रैली में ऐलान किया था कि आने वाले सभी चुनावों में अब कांग्रस ही जीतेगी.

इस बार भी यही हुआ. कांग्रेस ने यूपीए 3 में राहुल के नेतृत्व की राह तैयार करने के मकसद से जनाक्रोश रैली के जरिए दो जगह संदेश भेजने की कोशिश की. पहला संकेत सहयोगी और बीजेपी-संघ विरोधी दलों को सलमान खुर्शीद के जरिए दिया गया.


बीजेपी को हराने के लिए असली मुकाबला संघ से है

राहुल गांधी ने सलमान खुर्शीद के हाल ही में दिए गए बयान को खुर्शीद का निजी विचार बताया तो साथ ही ये हिदायत भी दी कि अलग अलग विचारधारा के बावजूद बीजेपी और आरएसएस की विचारधारा से लड़ने के लिए एकजुट होने की जरूरत है. साफ है कि उनका इशारा सलमान खुर्शीद के जरिए उस तीसरे मोर्चे की तरफ था जो कि बीजेपी और आरएसएस विचाराधारा का विरोध तो करते हैं लेकिन राजनीतिक नफे-नुकसान के चलते कांग्रेस के साथ आने से कतरा भी रहे हैं.

ऐसे में राहुल गांधी ने सलमान खुर्शीद की राय को पार्टी के भीतर ‘आजाद आवाज’ का अमलीजामा पहना कर ये बताने की कोशिश की कि कांग्रेस के भीतर सभी नेता-कार्यकर्ता अपनी निजी राय रखने के लिए स्वतंत्र हैं. लेकिन साथ ही ये भी ताकीद कर दिया कि संघ की विचाराधारा से लड़ने के लिए सबका एकजुट होना जरूरी है. कांग्रेस ये जानती है कि बीजेपी को हराने के लिए असली मुकाबला संघ से है. संघ का काडर देश के कोने-कोने में मजबूत होता जा रहा है. केरल में कम्यूनिस्ट पार्टियों के लिए संघ चुनौती बन चुका है तो पश्चिम बंगाल में टीएमसी भी संघ को देखकर ‘सावधान मुद्रा’ में आ चुकी है. त्रिपुरा की हार कांग्रेस के लिए भी सबसे बड़ा सबक है कि वहां नंबर दो की पार्टी होने के बावजूद सूपड़ा ही साफ हो गया.

लेकिन खुर्शीद को ‘अभयदान’ देने के पीछे राहुल की राजनीतिक वजह को भी समझने की जरुरत है. सलमान खुर्शीद ने कहा था कि कांग्रेस के दामन पर भी मुसलमानों के खून के दाग हैं. दरअसल अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम के दौरान उनसे पूछा गया कि 1947 में आज़ादी के बाद हाशिमपुरा, मलियाना, मेरठ,मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, भागलपुर, अलीगढ़ जैसी जगहों पर मुसलमानों का नरसंहार हुआ. इसके अलावा बाबरी मस्जिद के दरवाजे खुलवाना और बाबरी विध्वंस जैसी घटनाएं भी कांग्रेस शासन के दौर में हुई तो कांग्रेस के दामन पर मुसलमानों के इन तमाम धब्बों को आप किन शब्दों के ज़रिये धोएंगे?

जिस पर खुर्शीद ने माना था कि कांग्रेस के दामन पर भी दंगों के दाग़ हैं. लेकिन राहुल ने यहां संभलकर सलमान खुर्शीद के बयान का राजनीतिक इस्तेमाल किया. उन्होंने कहा कि वो सभी विचारों का सम्मान करेंगे लेकिन जब हम दूसरी विचारधारा के खिलाफ लड़ रहे हैं तो एकजुट होकर लड़ना होगा.

लेकिन इससे ये साफ नहीं हो सका कि कांग्रेस क्या ये वाकई मानती है कि उसके शासनकाल में मुसलमानों की जान दंगों में गई? अगर राहुल वाकई सलमान खुर्शीद के बयान से इत्तेफाक रखते हैं तो क्या वो पिछले सत्तर साल में कांग्रेस शासित राज्यों में हुए दंगों के लिए मुसलमानों से माफी मांगेंगे? क्या उन्हें 1984 के सिख दंगों की तरह की खुर्शीद के बयान के बाद मुस्लिम समुदाय से भी माफी मांगनी चाहिए? क्या उन्होंने सलमान खुर्शीद को इसलिए माफ कर दिया और रक्षा का वचन दिया क्योंकि वो मुसलमान हैं?

दिल्ली में राहुल ने मोदी सरकार के खिलाफ जन आक्रोश रैली की
दरअसल ये सारे सवाल इसलिए भी जरूरी हैं क्योंकि बीजेपी को घेरने के लिए धर्मनिरेपेक्षता को हथियार बनाने वाली कांग्रेस खुद भी ‘सॉफ्ट-हिंदुत्व’ के नए अवतार में है. तभी राहुल गांधी ने ये भी कहा कि वो कर्नाटक चुनाव के बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा करेंगे. इससे पहले भी वो गुजरात और कर्नाटक में मंदिर परिक्रमा कर चुके हैं तो उनके जनेऊ धारण का कांग्रेस ने विज्ञापन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. दरअसल सॉफ्ट हिंदुत्व के पीछे कांग्रेस नेता ए.के. एंटनी की वो रिपोर्ट है जिसमें कहा गया था कि हिंदुओं से दूरी की वजह से ही कांग्रेस को साल 2014 के चुनाव में हार देखनी पड़ी. यहां तक कि खुद यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी ये कहना पड़ गया कि कांग्रेस को हिंदू विरोधी बता कर दुष्प्रचारित किया गया है.

ऐसे में राहुल गांधी एक तरफ सॉफ्ट हिंदुत्व के जरिए हिंदू वोटबैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं तो वहीं वो धर्मनिरपेक्षता, सहिष्णुता और सांप्रदायिक माहौल को हथियार बनाकर संघ के विरोध की आड़ में मुसलमानों को जोड़ने की कोशिश भी कर रहे हैं. राहुल ये जानते हैं कि संघ का ही डर दिखाकर छिटके मुस्लिम वोट बैंक को साधा जा सकता है क्योंकि पीएम मोदी ‘सबका साथ-सबका विकास’ के नारे के जरिए अल्पसंख्यकों के दिलों से डर निकालने में कामयाब रहे हैं.

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70 सालों में कांग्रेस ने देश को जोड़ने का काम किया है

कांग्रेस के पिछले शासनकाल में जितने दंगे हुए उनका जवाब उसके पास नहीं है लेकिन वो मोदी सरकार पर नफरत और हिंसा फैलाने का आरोप लगा रहे हैं जबकि केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद उस पर एक भी दंगे का आरोप नहीं लगा है.

ऐसे में राहुल की रणनीति उस हौव्वे को बरकरार रखने की है जिसके बूते कांग्रेस का मुस्लिम वोट बैंक किसी वक्त सबसे मजबूत आधार होता था. लेकिन बाद में ये खिसकते खिसकते क्षेत्रीय दलों के पास चला गया.

तभी राहुल कांग्रेस के पुराने राजनीतिज्ञों के नक्शे कदम पर चलते हुए ही बीजेपी पर नफरत फैलाने का आरोप लगा रहे हैं तो देश की सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने का आरोप लगा रहे हैं. वो कहते हैं कि देश के डीएनए में नफरत नहीं है और भारत ने पिछले तीन हजार साल में किसी भी देश पर आक्रमण नहीं किया. वो कहते हैं कि 70 सालों में कांग्रेस ने देश को जोड़ने का काम किया है और महिलाओं, अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों की रक्षा करने का काम किया है और अब बीजेपी-आरएसएस की नफरत के खिलाफ लड़ना है.

कर्नाटक चुनाव को लेकर राहुल गांधी इन दिनों एक दिन में कई रैलियां कर रहे हैं.

राहुल का ये भाषण नब्बे के दशक में शुरू हुई गठबंधन की सरकारों के दौर की याद दिलाता है. केंद्र में जब एनडीए सरकार कभी 13 दिन तो कभी 13 महीनों में सत्ता से बेदखल हुई थी तो उसकी बड़ी वजह यही थी कि बीजेपी पर सांप्रदायिकता का आरोप लगा कर कथित धर्मनिरपेक्ष दलों ने समर्थन देने से इनकार कर दिया था. सभी दलों को अपने वोटबैंक को खोने का डर था. आज कांग्रेस उसी डर को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है ताकि बीजेपी पर एक बार फिर सांप्रदायिक होने का आरोप साबित कर साल 2019 के लोकसभा चुनाव की धारा तय की जा सके.

राहुल इस बयान के जरिए ये बता गए कि एक तरफ वो मुसलमानों के हितैषी भी हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने पिछले 70 साल में हिफाजत का काम किया है.

इस भाषण के जरिए राहुल का सॉफ्ट हिंदुत्व कहीं से प्रभावित नहीं हुआ. बल्कि उन्होंने मुस्लिम समुदाय को संबोधित किए बगैर ही ये संदेश भी पहुंचा दिया कि कांग्रेस उनके मुहाफिज़ के तौर पर खड़ी है.

जाहिर तौर पर कांग्रेस राजनीति की पुरानी राह पर चलने को मजबूर है क्योंकि उसके पास सीधे तौर पर बीजेपी और पीएम मोदी को कठघरे में खड़ा कर जनभावना को बदलने का चार साल में कोई मौका नहीं मिल सका. या फिर जो मौके उसे मिले वो उन्हें जनता तक ठीक से ले जा नहीं सकी और बीजेपी ने अपनी गलतियों को वक्त से पहले ही सुधार लिया.

अब जिस तरह से दलितों को लेकर भारत बंद का आव्हान किया गया और फिर संविधान बचाओ रैली की तो अब जनाक्रोश रैली से साफ है कि कांग्रेस चुनाव के मोड में पूरी तरह उतर चुकी है और राहुल साल 2019 के चुनाव का बिगुल फूंक चुके हैं.

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राहुल उत्साह और आत्मविश्वास से लबरेज हैं तभी उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव जीतेगी तो साथ ही 2019 का लोकसभा चुनाव भी जीतेगी. इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल में मजबूत नेतृत्व क्षमता उभर कर सामने आ रही है लेकिन चुनावी में जीत के नतीजों से ही कार्यकर्ताओं में जोश आएगा और नेतृत्व क्षमता का असली इम्तेहान भी तभी होगा.

बीजेपी के खिलाफ राहुल गांधी ने सॉफ्ट हिंदुत्व को मुद्दा बनाया है.

कांग्रेस सच के साथ खड़ी है

जनाक्रोश रैली में राहुल ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कर्नाटक में बीजेपी को घेरते हुए बीएस येदुरप्पा पर हमला किया और कहा कि येदुरप्पा वो मंत्री हैं जो जेल जा चुके हैं. अब राजनीति की विडंबना देखिए कि राहुल खुद भी आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव से मिलने एम्स अस्पताल गए और लालू पर चारा घोटाला मामले में कौन-कौन से आरोप कोर्ट में साबित हो चुके हैं वो देश जानता है. इसके बावजूद राहुल का कहना कि कांग्रेस सच के साथ खड़ी है तो वो कई सवाल भी खड़े कर जाता है.

वो कहते हैं कि देश के डीएनए में नफरत नहीं है लेकिन लोकतंत्र की मिसाल देखिए कि जिस पार्टी पर राहुल नफरत फैलाने का आरोप लगा रहे हैं उस बीजेपी और एनडीए की 21 राज्यों में सरकार है. मोदी सरकार पर हमला करने से चार राज्यों में सिमटी हुई कांग्रेस गरीबी और बेरोजगारी को लेकर अपना इतिहास नही बदल सकती है. क्योंकि सिर्फ चार साल की सरकार पर सवाल उठा कर जनादेश को जनाक्रोश के जरिए बदला नहीं जा सकता है.

कुल मिलाकर राहुल गांधी के जनाक्रोश रैली के बाद ये माना जा सकता है कि वो साल 2019 के चुनाव की नई धारा तय करने और उसमें धार देने में जुट चुके हैं.

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