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अब साढ़े सात वर्ष न्याय के देवता का वक्त

इसी बहाने (आशीष शुक्‍ला ) । यूं तो भगवान शनि के साढ़ेसाती पता नहीं किसके लिए फलदायक बन जाये तो कब वह व्यक्ति को परेशान कर दे। मानने के लिए ज्योतिष, भाग्यफल उपाय इस देश की संस्कृति में समाए हैं। यही कारण है कि देश मे हर वक्त चलते चुनावों की बेला में किसी पर शनि देव की प्रसन्नता खूब बरसती है, तो कोई शनि की शांति कराने के लिए प्रयासरत दिखता है। शनि भगवान को न्याय का देवता भी कहा जाता है।

वास्तव में हमारे यहां न्याय की सचमुच अगर कहीं जरूरत है तो वो देश की राजनीति में ही दिखती है । यहां न्याय की आस लगाए जनता पर शनि देवता की कृपा कभी बरसती है तो कभी इसके फेर में पड़ कर अच्छे-अच्छे अभेद किले में सेंध लग जाती है। देश मे हर सप्ताह किसी न किसी निर्वाचन के परिणाम की चिंता देश के जटिल मुद्दों से लोगों को भटकाने की कामयाब कोशिश में हर वक्त जुटी रहती है।कल उप चुनावों के परिणाम में शनि के साढ़े साती का असर दिखा, किसी ने आश्चर्यजनक ढंग से जीत का सेहरा पहना तो कोई हार की सफाई देने चिंतन और मंथन के साथ दिल्ली दरबार मे हाजरी देने जा पहुंचा। यही तो ग्रहों का फेर है पता नहीं कब किसके बिगड़ जाए तो कब किसे सफलता की बुलंदियों तक पहुंचा जाएं।

वैसे आप सोच रहे होंगे इस इन सब मे आखिर आज हमें न्याय के देवता भगवान शनि की याद क्यों आ गई? दरअसल सुबह-सुबह सो कर उठा ही था कि तभी मोबाइल की घण्टी घनघनाई फोन उठाने में ज्यादा इंतजार मुझे पसंद नहीं, जैसा इस समय अमूमन हर व्यक्ति को पसंद होता है। क्योंकि मुझे टेलीफोन की महत्ता उन दिनों की याद दिलाती है जब किसी दूसरे के लिए मेरे घर मे पीपी काल आता था, तो कभी मैं पड़ौसी के घर फोन उठाने जाता था। आज लोगों की महत्ता इतनी कम हो गई कि जरूरी से जरूरी फोन भी कम से कम एक बार इग्नोर करने की तो बनती ही है।

बहरहाल फोन पर सवाल या जवाब था मुझे नहीं पता पर एक अजीज ने प्रश्न की मुद्रा में मुझे जानकारी दी कि साढ़े 7 महीना बचे हैं! पहले तो समझ नहीं आया कि आखिर काहे के साढ़े 7 महीना बचे हैं! फिर दिमाग पर जोर डाला तो ध्यान आया कि प्रदेश के लोकतंत्र के यज्ञ के लिए अब मात्र साढ़े 7 महीना ही बचे हैं। यूँ तो 7-8 महीना कम नहीं होते, मगर जब इसमे साढ़ेसात शब्द जुड़ जाए तो बरबस भगवान शनि की याद आ ही जाती है। मोबाइल पर मुझसे पूछने या मुझे बताने वाले ने साढ़े 7 महीनों के इस वक्त को बता कर मुझे पूरे राजनीतिक परिदृश्य की व्याख्या कर डाली, लगा मानो इस महाजानकार शख्स को कोई राजनीतिक दल अपना सलाहकार क्यों नहीं बना लेता? खैर.. अब जब बात साढ़े 7 वर्ष की हुई तो यह भी सोचने पर विवश हुआ कि साढ़े साती का यह समय किसके लिए कितना शुभ या फिर अशुभ फल देने वाला होगा, कुछ भी कहना जल्दबाजी ही होगी। फिलहाल तो जनता पर ही भगवान शनि का वास है। किसकी कुंडली में कौन सा ग्रह बैठा दे पता नहीं। कब किसे सत्ता दिला दे या सत्ता से गिरा दे कुछ नहीं कह सकते। विधानसभा चुनावों के वक्त में दिन-ब-दिन कमी राजनीतिक गलियारों में सूरज की तपिश से कहीं ज्यादा बढ़ती नजर आ रही है। अब दो ऋतुएं शेष हैं। गर्मी के बाद बारिश आयेगी और फिर ठंड। गुलाबी ठंड के दौर में लोकतंत्र का महायज्ञ होगा जिसमें ठंडे मन से जनता अपना फैसला चुनेगी, पर इस फैसले के पहले वो फैसला ज्यादा कठिन होगा जिसमें अमूमन शनि की साढ़े साती नजर आयेगी। किसी को टिकट के योग बनेंगे तो कोई योग्य होते हुए भी योग न बन पाने से विचलित नजर आते इसे भी भगवान शनि की कृपा बताएगा। चुनावों के समय में साढ़े सात शब्द से कई माननीयों के सपने भी बुने जा रहे हैं। अब ये सपने कितने साकार होते हैं आने वाला समय बताएगा। कठिन है आने वाला समय जिसमें योग बनेंगे और बिगड़ भी सकते हैं। जो समय रहते समझ गया वह इस साढ़ेसाती शब्द से पार पाते अपने ग्रहों को मजबूत बना लेगा अन्यथा हर बार की तरह कुंडली जनता ही लिखेगी फिर उसका मन जिसके ग्रह बुलंदियों पर पहुंचा दे या फिर वक्र दृष्टि में बदल दे।

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