आपके फोटोज और कमेंट्स को अपना माल समझने लगीं FB-Google
मल्टीमीडिया डेस्क। फेसबुक से डाटा चोरी होने और चुनावों के दौरान उनका दुरुपयोग होने का मामला गर्माया है। मार्क जकरबर्ग ने भी गलती मान ली है। इस बीच, सवाल उठा है कि आखिर अपने यूजर के डाटा के साथ कोई भी सोशल मीडिया कंपनी खिलवाड़ कैसे कर सकती है?
सच्चाई तो यह है कि ये कपंनियां यूजर के डाटा से ही कमाई कर ही हैं। उन्हें तो उल्टा लोगों को इन प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करने के लिए पैसे देना चाहिए, क्योंकि यूजर नहीं आएंगे, अपनी चीजें शेयर नहीं करेंगे तो चाहे फेसबुक हो या गूगल, कोई भी सोशल मीडिया कंपनी चल नहीं पाएगी।
डाटा को लेकर अमेरिका में एक दिलचस्प कोर्ट केस चला है। यहां HiQ नामक कंपनी ने LinkedIn के खिलाफ शिकायत की थी। दरअसल, किसी यूजर ने LinkedIn पर अपनी डिटेल्स पोस्ट की और HiQ ने LinkedIn से उठाकर उसे यूज कर लिया। इस पर LinkedIn ने आपत्ति ली और कहा कि वह डाटा उसका है।
इस पर HiQ ने कोर्ट केस कर दिया कि डाटा यूजर का है और LinkedIn उस पर दावा नहीं कर सकता है। आखिरकार फैसला HiQ के पक्ष में गया।
जानिए कंपनियों के लिए कितना अहम है हमारा डाटा
- गूगल और फेसबुक की कमाई का बड़ा हिस्सा विज्ञापनों से आता है। इन्हें ये विज्ञापन इसी आधार पर मिलते हैं कि यूजर किन चीजों में रुचि दिखा रहा है, उसकी पसंद-नापसंद क्या है?
बड़ी मात्रा में डाटा को स्कैन करने के लिए इन कंपनियों ने अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का सहारा लेना शुरू कर दिया है। यानी यूजर्स से आ रही जानकारी कितनी भी बड़ी हों, ये कंपनियां उसका फायदा उठाने को तैयार हैं।
ध्यान देने वाली सबसे बड़ी बात यह है कि यूजर्स की पर्सनल इनफॉर्मेशन के बिना ये कंपनियां चल नहीं सकती, क्योंकि ऐसी इनफॉर्मेशन किसी और तरह से तैयार नहीं की जा सकती। कुछ कंपनियों ने फर्जी तरीके अपनाए, लेकिन जल्द समझ आ गया कि यूजर्स से सीधी मिली जानकारी अनमोल है।
यहां कोई कंपनी नहीं, लोग हैं अपने डाटा के मालिक
इस मामले में यूरोपिय यूनियन मिसाल है। यहां हर व्यक्ति अपने डाटा का मालिक है। कोई कंपनी उसका बगैर अनुमति उपयोग नहीं कर सकती है। वहीं अमेरिका समेत अन्य देशों में उस मॉडल पर काम हो रहा है, जहां कंपनियां इस जानकारी की मालिक होती हैं। भारत में तो अभी किसी ने इस दिशा में सोचना शुरू ही नहीं किया है।
..तो अब क्या होगा, हम क्या करें?
फेसबुक डाटा लीक का मामला सामने आने के बाद लोगों को अपनी निजी और पारिवारिक जानकारी तथा विभिन्न मुद्दों पर सोशल मीडिया पर की गईं टिप्पणियों की वेल्यू पता चल रही है।
मांग उठ रही हैं कि सरकारों को इन टेक्नोलॉजी कंपनियों पर डाटा टैक्स लगाना चाहिए। लेकिन सच्चाई यह भी है कि अब तक इन कंपनियों के पास हमारा इतना ज्यादा मुफ्त का डाटा पहुंच चुका है कि अब टैक्स कैसे लगा पाएंगे? डाटा लाइसेंसिग का काम भी इतना आसान नहीं होगा। सरकारें इन कंपनियों पर टैक्स लगाती हैं तो क्या भरोसा कि नागरिकों के हितों को ज्यादा ध्यान रखा जाएगा, बजाए कि मोटा चंदा देने वाली कंपनियों के।
कुल मिलाकर, यूजर तो एक ही काम कर सकते हैं और वो यह है कि वह अपनी जानकारी और अपने डाटा को समझदारी पूर्वक यूज करे। कोई भी चीज शेयर करने से पहले उस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से पारदर्शिता की मांग की जाए। बड़ी संख्या में यूजर्स ऐसा करेंगे तो कंपनियों को झुकना ही पड़ेगा।
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