फेसबुक विवादः तो क्या टूट जाएगा जकरबर्ग का राष्ट्रपति बनने का सपना!
नेशनल न्यूज। अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के जुकरबर्ग के सपने को फेसबुक पर लगे आरोपों से गहरा झटका लगा है.

अमेरिका की पॉलिटिकल डेटा एनालिसिस कंपनी कैम्ब्रिज एनालिटिका पर 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स का डेटा चुराने और उसका गलत इस्तेमाल कर चुनावों को प्रभावित करने के आरोप लगे हैं. इन आरोपों के चलते सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक और उसके मालिक मार्क जकरबर्ग की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं. अब यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या अब अमेरिका के राष्ट्रपति बनने का जकरबर्ग का सपना पूरा हो पाएगा? अभी तक मिल रहे संकेतों से माना जा रहा था कि उन्होंने 2020 के राष्ट्रपति चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. जकरबर्ग ने इसके लिए बाकायदा एक मुख्य रणनीतिकार के साथ कई सीनियर कंसलटैंट और प्रोफेशनल्स की नियुक्ति भी कर ली. उनके मुख्य रणनीतिकार बने बेनेसॉन पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के एडवाइजर और हिलेरी क्लिंटन के चीफ स्ट्रेटजिस्ट थे. अगर ऐसा होता तो वे अमेरिकी इतिहास के सबसे अमीर राष्ट्रपति हो सकते थे.

लेकिन अब ब्रिटेन, यूरोपीय कमीशन और अमेरिकी संसद समेत दुनिया के कई देशों से यह मांग सामने आ रही है कि डाटा ब्रीच मामले में मार्क जकरबर्ग से पूछताछ की जानी चाहिए. इस विवाद के बीच कंपनी के वैल्यूएशन में महज 48 घंटों के भीतर 50 अरब डॉलर यानी लगभग 3.5 लाख करोड़ रुपए की कमी आई है. जकरबर्ग के खुद का नेट वर्थ 58,500 करोड़ रुपए कम हो चुका है. इससे वे दुनिया के चौथे सबसे अमीर व्यक्ति से 7वें नंबर पर आ गए हैं.

ब्रिटिश डेटा एनालिटिक्स फर्म ‘कैंब्रिज एनालिटिका’ ताजा विवाद के केंद्र में है. फर्म पर 5 करोड़ फेसबुक यूजर्स के डेटा को चुराने और उसका इस्तेमाल ‘चुनाव प्रचार’ में करने का आरोप है. 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ये कंपनी डोनाल्ड ट्रंप को सर्विस दे चुकी है. ये खुलासा न्यूयॉर्क टाइम्स और लंदन ऑब्जर्वर की रिपोर्ट में किया गया है. अमेरिकी खुफिया एजेंसी में काम कर चुके और व्हिसलब्लोअर स्नोडेन ने तो यहां तक कहा है कि करोड़ों लोगों के प्राइवेट डेटा को बेचकर फेसबुक ने खूब पैसे बनाए हैं. स्नोडेन ने कहा कि फेसबुक ने सोशल मीडिया कंपनी होने का चोला ओढ़ रखा है, लेकिन वो सर्विलांस कंपनी है.

जुकरबर्ग ने बराक ओबामा और हिलेरी क्लिंटन के सहायक रहे जोएल बेनेसॉन को सबसे अहम पद दिया है. बेनेसॉन 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में हिलेरी के चीफ स्ट्रेटजिस्ट थे. हालांकि जुकरबर्ग ने बेनेसॉन के पद को कुछ और नाम दिया है. उन्हें जुकरबर्ग और उनकी पत्नी प्रिशिला चान के ज्वाइंट फ्रिलांथ्रोपिक प्रोजेक्ट का कंसल्टैंट बनाया गया है.

<strong>ये हैं जुकरबर्ग की टीम के अन्य सदस्य:</strong> जुकरबर्ग और चान ने 2008 में ओबामा के कैंपेन मैनेजर डेविड पॉफे, पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश के 2004 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के प्रभारी केन मेहमैन के साथ ही टिम कैने के पूर्व कम्युनिकेशन एडवाइजर एमी डडले समेत कई प्रमुख लोगों को भी प्रचार-प्रसार के काम में लगाया है.

<strong>सभी 50 राज्यों की कर रहे हैं यात्रा:</strong> जुकरबर्ग 2017 में पूरे साल ‘लिसनिंग टूर’ पर हैं. खबर के मुताबिक इस दौरान उन्होंने देश के लगभग सभी 50 राज्यों की यात्रा की. उन्होंने हर राज्य के नेताओं और प्रमुख लोगों से भी मुलाकात की और यह सिलसिला लगातार चल रहा है. अपनी यात्रा के दौरान होने वाली चीजों के डाक्यूमेंटेशन के काम पर उन्होंने बुश और ओबामा दोनों के राष्ट्रपति चुनाव अभियान में अग्रणी भूमिका निभाने वाले फोटोग्राफर चार्ल्स ओमैनी को लगाया है.

<strong>चुनाव अभियान पर संभावित खर्च उनके एसेट का महज एक फीसदी:</strong> अगर जुकरबर्ग चुनाव लड़ते हैं और इसकी तुलना 2016 में हिलेरी द्वारा किए गए खर्च से करें तो यह रकम जुकरबर्ग के कुल एसेट का महज एक फीसदी होगा. जबकि हिलेरी के चुनाव अभियान को कुछ लोगों ने अभी तक का सबसे खर्चीला बताया है.
<strong>74 अरब डॉलर है जुकरबर्ग का नेटवर्थ:</strong> फॉर्ब्स के अनुसार, मार्क जुकरबर्ग का नेटवर्थ लगभग 74 अरब डॉलर यानी लगभग 5 लाख करोड़ रुपए थी. इस तरह वे दुनिया के सबसे रईस लोगों में एक हैं, लेकिन अब इसमें 58500 करोड़ रुपए की कमी आ गई है.

<strong>अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव पर कितना होता है खर्च:</strong> सेंटर फॉर रेस्पॉन्सिव पॉलिटिक्स के अनुसार, 2016 में हुए अमेरिकी राष्ट्रपति और कांग्रेस के चुनाव पर कुल मिलाकर रिकॉर्ड 6.5 अरब डॉलर खर्च हुए थे. इसमें क्लिंटन ने 768 मिलियन और डोनाल्ड ट्रंप ने 398 मिलियन डॉलर खर्च किए थे.

<strong>किन मुद्दों पर जुकरबर्ग का है फोकस:</strong> जुकरबर्ग का फोकस अभी पूरी तरह से साफ नहीं हुआ है, हालांकि यूनिवर्सल बेसिक इनकम की उन्होंने वकालत की है और वह भी बगैर उम्र, क्लास, जॉब स्टेटस या किसी अन्य चीज का ख्याल किए. यानी वे चाहे हैं कि इन सबके बगैर सभी को यूनिवर्सल बेसिक इनकम सुनिश्चित हो.
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