हलाल पर बवाल: आखिर क्या होते हैं इससे जुड़े उत्पाद? जानें सब कुछ
हलाल पर बवाल: देश में एक बार फिर हलाल का मुद्दा खड़ा हो गया है। यह मुद्दा तब सामने आया, जब शनिवार (18 नवंबर) को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य में किसी भी उत्पाद के हलाल प्रमाणन पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी। इससे पहले 17 नवंबर को यूपी पुलिस ने लखनऊ के हजरतगंज थाने में हलाल सर्टिफिकेशन जारी कर धंधा करने वाली कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी।
हलाल का मुद्दा भले ही यूपी में अभी चर्चा में है लेकिन इससे पहले दक्षिणी राज्य कर्नाटक में महीनों तक यह मुद्दा छाया रहा था। ऐसे में हमें जानना चाहिए कि हलाल उत्पाद होते क्या हैं? यूपी में हलाल उत्पादों को लेकर क्या मुद्दा है? इससे पहले कर्नाटक में क्या हुआ था?
यूपी में हलाल उत्पादों को लेकर क्या मुद्दा है?
उत्तर प्रदेश में किसी भी उत्पाद पर हलाल प्रमाणन पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी गई है। प्रदेश में हलाल प्रमाणन वाले किसी भी खाद्य उत्पादों और दवाओं को स्वीकार नहीं किया जाएगा। 18 नवंबर को इस संबंध में आदेश जारी कर किया गया है। यदि कोई उत्पादन हलाल प्रमाणन वाला पाया गया तो संबंधित निर्माता के खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। निर्माण के साथ ही भंडारण, वितरण, विक्रय पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है।
आदेश के मुताबिक, यह पाबंदी खाद्य उत्पाद के साथ ही दवाओं पर भी लागू होगी। हालांकि, विदेश भेजे जाने वाले उत्पाद के लिए छूट रहेगी। इस संबंध में सभी खाद्य एवं औषधि निरीक्षकों को निरंतर निगरानी के निर्देश दिए गए हैं।
योगी सरकार के फैसले को देंगे चुनौती: जमीयत उलमा-ए-हिंद
इस बीच जमीयत उलमा-ए-हिंद ट्रस्ट ने योगी सरकार के फैसले को अदालत में चुनौती देने का एलान किया है। ट्रस्ट के सीईओ नियाज अहमद फारुकी ने यूपी में हलाल लिखे उत्पादों की बिक्री पर शासन द्वारा प्रतिबंध लगाने को गलत करार दिया है। फारुकी ने कहा कि वह इस मुद्दे को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।
कर्नाटक में हलाल पर क्यों मचा था बवाल?
देश के कई राज्यों में समय-समय पर हलाल उत्पादों पर पाबंदी लगाने की मांग उठती रही है। यूपी से पहले कर्नाटक में हलाल उत्पादों को बंद करने की मांग उठी थी। पिछले साल दिसंबर में राज्य विधानसभा के बेलगावी में हुए सत्र के दौरान हलाल मीट पर पाबंदी के लिए एक विधेयक लाया गया था।
कर्नाटक विधान परिषद में भाजपा के सदस्य एन. रविकुमार ने यह विधेयक लाने की पहल की थी। उस वक्त भाजपा नेता ने कहा था कि एफएसएसएआई के अलावा किसी अन्य निकाय द्वारा खाद्य वस्तुओं का प्रमाणन नहीं करना चाहिए। बगैर एफएसएसएआई सर्टिफिकेट के हलाल मीट के विक्रय पर पाबंदी लगना चाहिए।
ऐसे शुरू हुई थी विवाद की शुरुआत
इस मुद्दे पर पिछले साल मार्च में भी उस समय विवाद खड़ा हो गया, जब हिंदू संगठनों ने उगाड़ी उत्सव के दौरान राज्य में हलाल मांस के बहिष्कार का आह्वान किया था। उस दौरान भाजपा का एक धड़ा विधेयक पारित कर इसे कानूनी मान्यता देना चाहता था। रविकुमार ने इसे एक निजी बिल के रूप में पेश करने की योजना भी बनाई थी। हालांकि, सरकारी विधेयक न होने के कारण यह आगे नहीं बढ़ सका और कुछ महीनों बाद मई में कांग्रेस की सरकार आ गई।
हलाल पर क्यों होता है विवाद?
दरअसल, मीट निकालने के लिए हलाल और झटका दो तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। हलाल मीट में जानवर की सांस की नली को काट दिया जाता है। इसकी वजह से थोड़ी देर बाद उसकी मौत हो जाती है। ऐसा करने के लिए जानवर की गर्दन को रेता जाता है। वहीं, झटका मीट जानवर की गर्दन पर एक झटके में तेज वार किया जाता है। इससे गर्दन धड़ से अलग हो जाती है। इस्लाम में हलाल मीट की मान्यता है।
पिछले साल कर्नाटक में जो लोग हलाल मीट का विरोध कर रहे थे। उनका कहना था कि इस तरह मारे गए जानवर का मांस हिंदू देवी-देवताओं के लिए दूषित हो जाता है। इसलिए एक ही झटके से मारे गए जानवर का मांस ही ठीक है। जिसे होसा-तड़ाकू उत्सव पर देवी-देवताओं को चढ़ाया जा सकता है।
हलाल मीट का विवाद आने के बाद बेंगलुरू की वकील और पोषण-आहार कार्यकर्ता क्लिफ्टन रोजारियो का बयान सामने आया था। रोजारियो ने दावा किया, ‘जानवरों को झटके से मारा गया हो या हलाल किया गया हो। इससे उनके मांस की पौष्टिकता पर कोई असर नहीं पड़ता। जानवरों को मारे जाने की प्रक्रिया का पूरा मामला धार्मिक है।’