ये चुनाव नहीं आसां: पांचों विधानसभा में कांटे की टक्कर, कहीं जातिगत समीकरण, तो कहीं विरोधियों ने मुश्किल बनाई राह
शिवपुरी: ये चुनाव नहीं आसां: पांचों विधानसभा में कांटे की टक्कर, कहीं जातिगत समीकरण, तो कहीं विरोधियों ने मुश्किल बनाई राह।
ये इश्क नहीं आसां इतना समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है…, जिगर मुरादाबादी का यह शेर वर्तमान में शिवपुरी के चुनावी माहौल में पूरी तरह से फिट बैठता है।
जिले की पांचों विधानसभाओं में से एक भी सीट ऐसी नहीं है जिस पर किसी प्रत्याशी के लिए राह आसान हो। कहीं पर निर्दलीय प्रत्याशी जातिगत समीकरण बिगाड़ रहे हैं तो किसी सीट पर अपनी ही पार्टी के कार्यकर्ताओं का भितरघात प्रत्याशी की नींदे उड़ा रहा है।
प्रत्याशियों के राजनीतिक पंडित उन्हें जीत का गणित तो समझा रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर उनके यह समीकरण उलझे हुए नजर आ रहे हैं। इस बात का भान प्रत्याशियों को भी अच्छी तरह से है। विधानसभा वार स्थिति देखें तो शिवपुरी में लंबे समय बाद सिंधिया परिवार से कोई चुनाव मैदान में नहीं है जिसके चलते यहां कांटे की टक्कर है। वहीं पिछोर और कोलारस में सजातीय उम्मीदवारों के आमने-सामने होने से जातिगत समीकरण काम नहीं कर रहे।
पोहरी में भाजपा त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा के गढ़ शिवपुरी में सेंध लगाते हुए पांच में से तीन सीट हासिल की थी। इसके बाद उपचुनाव के बाद भाजपा के खाते में तीन और कांग्रेस के हिस्से में दो सीट बची थीं। इस बार देखना होगा कि पंजे और फूल के बीच किस पार्टी की बढ़त बनती है।
शिवपुरी: लंबे समय बाद शिवपुरी में कड़ा मुकाबला
शिवपुरी सीट टिकट वितरण के साथ ही प्रदेशभर में चर्चा का विषय बनी रही। कांग्रेस ने यहां से अपने अपराजेय नेता केपी सिंह को उतारकर चौंकाया था। यह वही सीट है जिसके लिए कमल नाथ ने दिग्विजय सिंह के कपड़े फाड़ने तक की बात कार्यकर्ताओं से कह दी थी। इस सीट पर भी कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी।
पोहरी: त्रिकोणीय मुकाबले में फंस गए मंत्री
पोहरी में मुकाबला स्पष्ट रूप से त्रिकोणीय हो गया है। यहां पर बसपा ने जीत भले ही हासिल न की हो, लेकिन हर चुनाव में निर्णायक भूमिका जरूर निभाती है। यहां पर धाकड़ जाति का वोट बैंक बहुत अधिक है और इस बार बसपा से धाकड़ प्रत्याशी प्रद्युम्न वर्मा चुनाव लड़ रहे हैं। ऐसे में सीधे तौर पर 40 हजार धाकड़ वोटों के जरिए जीत का अनुमान लगाने वाले भाजपा प्रत्याशी सुरेश धाकड़ को जातिगत वोट बैंक का नुकसान उठाना पड़ेगा। कई भाजपा नेता अंदरूनी रूप से सुरेश राठखेड़ा की जड़ें काटने में जुटे हैं जिससे वे भी वाकिफ हैं।