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ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर को गढ़ लौटाने की जिम्मेदारी

ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेंद्र सिंह तोमर को गढ़ लौटाने की जिम्मेदारी मध्‍य विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की दूसरी सूची जारी करके भाजपा ने ग्वालियर-चंबल अंचल में एक छिपा संदेश दिया है। यह संदेश अंचल की राजनीति में भाजपा के दोनों सत्ता केंद्रों (केंद्रीय मंत्री द्वय नरेंद्र सिंह तोमर और ज्योतिरादित्य सिंधिया) के लिए है।

तोमर को दिमनी से टिकट दिया

 

यही वजह है कि पार्टी ने न सिर्फ मुरैना की दिमनी सीट से नरेंद्र सिंह तोमर को मैदान उतारा बल्कि श्योपुर से पिछला चुनाव हारने वाले दुर्गालाल लाल विजय और सबलगढ़ से कार्यकर्ताओं के लाख विरोध के बाद भी सरला रावत को पहली ही सूची में टिकट दे दिया।

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सिंधिया को भी उतार सकती है पार्टी

इसी तरह पार्टी ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी ग्वालियर शहर की किसी एक सीट (ग्वालियर पूर्व संभावित) से विधानसभा चुनाव लड़ा सकती है। दूसरी सूची में पार्टी ने भितरवार में जयभान सिंह पवैया, अनूप मिश्रा जैसे दिग्गजों को दरकिनार कर सिंधिया के साथ भाजपा में आए मोहन सिंह राठौड़ और डबरा से इमरती देवी सुमन को टिकट दिया है। पार्टी भली भांति जानती है ग्वालियर-चंबल में सत्ता के दो केंद्र हैं। वह दोनों को एक करने में अपनी ऊर्जा खर्च करने की बजाय दोनों को इस अंचल में गढ़ लौटाने की जिम्मेदारी देना चाहती है।

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10 साल पुराने परिणाम की अपेक्षा

 

2013 के चुनाव में ग्वालियर चंबल की 34 सीटों में भाजपा ने 27 सीटें जीती थीं। कांग्रेस को महज सात सीटों से संतोष करना पड़ा था। 2018 के चुनाव में इसका ठीक उलटा हो गया। इस बार कांग्रेस के खाते में 26 और भाजपा के खाते में महज छह सीटें आई थीं। एक सीट (भिंड) बसपा ने जीती थी। ग्वालियर-चंबल में खराब प्रदर्शन के चलते भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा था। हालांकि 2020 में हुए बड़े राजनीतिक उलटफेर के बाद भाजपा पुन: सत्ता पर काबिज हो गई। पार्टी आगामी विधानसभा चुनाव में सिंधिया तोमर से 10 साल पुराने परिणाम की अपेक्षा रख रही है।

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