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Engineering Chalange: उद्योगों को नहीं मिल रहे योग्य इंजीनियर, Engineering शिक्षा को चुनौती

Engineering Chalange: उद्योगों को नहीं मिल रहे योग्य इंजीनियर, Engineering शिक्षा को चुनौती तकनीकी क्षेत्र में युवाओं को प्रशिक्षित करने के लिए राज्य सरकार लगातार प्रयास कर रही है लेकिन प्रदेश में सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों की कमी अब भी महसूस की जा रही है ताकि औद्योगिक संस्थानों को कुशल इंजीनियर मिल सकें।

जानकारों का कहना है कि सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या बढ़ने से कमजोर आर्थिक वर्ग के विद्यार्थियों का इंजीनियर बनने का सपना भी पूरा हो सकेगा। हालांकि, राज्य सरकार पालिटेक्निक कालेजों का इंजीनियरिंग कालेजों में उन्नयन करने की तैयारी कर रही है लेकिन अब तक इसका क्रियान्वयन नहीं हो पाया है।

प्रदेश में इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या काफी कम है। जबकि निजी इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या कई गुना अधिक है, लेकिन निजी इंजीनियरिंग कालेजों में विद्यार्थियों से मनमानी फीस वसूले जाने की शिकायतें सामने आती हैं।

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उद्योगों को नहीं मिल रहे योग्य इंजीनियर

औद्योगिक घराने कई मंचों पर वर्तमान में तैयार होकर निकल रहे इंजीनियरों की कुशलता के स्तर पर सवाल उठा चुके है। वहीं केंद्र की रिपोर्ट में भी यह बात सामने आ चुकी है कि देश के केवल सात प्रतिशत इंजीनियरिंग स्नातक ही रोजगार के योग्य हैं, कुछ ऐसी ही स्थिति प्रदेश में भी है। प्रदेश में औद्योगिक क्षेत्र को अच्छे इंजीनियर नहीं मिल पाने के पीछे स्तरीय संस्थानों की कमी एक कारण है। वहीं देश के तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में प्रदेश की स्थिति अच्छी नहीं होने के पीछे भी यही कमी जिम्मेदार है।

तकनीकी शिक्षा से जुड़े लोगों का कहना है कि प्रदेश में सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों की संख्या बढ़ती है तो युवाओं को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सकेगी। वे समय के बदलते दौर के साथ नए–नए विषयों का ज्ञान हासिल कर सकेंगे, जो उनकी कार्यकुशलता को बढ़ावा देने वाला होगा।

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सरकारी से चार गुना महंगी निजी शिक्षा

प्रदेश के सरकारी इंजीनियरिंग कालेजों की एक वर्ष की फीस आज भी 25 हजार रुपये होती है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के अलावा पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों को यह फीस छात्रवृत्ति के रूप में राज्य सरकार से मिल जाती है, लेकिन निजी कालेजों में यही फीस चार गुना से अधिक हो जाती है। सरकारी कालेजों की संख्या कम होने के कारण बड़ी संख्या में युवाओं को मजबूरी में निजी कालेजों में प्रवेश लेना पड़ता है। महंगी पढ़ाई होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के कई विद्यार्थी चाहकर भी इंजीनियरिंग की पढ़ाई नहीं कर पाते।

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अर्द्धशासकीय कालेजों को भी मदद की दरकार

प्रदेश में तीन इंजीनियरिंग कालेज हैं, जिन्हें राज्य सरकार कालेज संचालन के लिए अनुदान देती है। अब इसमें कटौती हो गई है। इसके बावजूद इंदौर और ग्वालियर के कालेज अच्छे ढंग से संचालित हो रहे हैं लेकिन विदिशा के कालेज की स्थिति खराब होती जा रही है। कालेज को संचालन के लिए अपनी फीस बढ़ानी पड़ी, जिसके कारण कालेज में विद्यार्थियों की प्रवेश संख्या घट गई।

कालेज के जनसंपर्क अधिकारी आशीष मानौरिया के मुताबिक राज्य सरकार से मिलने वाली पिछड़ा वर्ग की छात्रवृत्ति भी अब सरकारी कालेज की फीस के बराबर कर दी है, जिसके चलते गरीब विद्यार्थियों के इंजीनियरिंग की पढ़ाई मुश्किल हो गई है।