एक्टर सैफ अली खान और उनके परिवार को एमपी हाईकोर्ट से झटका, जानिए पूरा मामला
एक्टर सैफ अली खान और उनके परिवार को एमपी हाईकोर्ट से झटका, जानिए पूरा मामला

जबलपुर। एक्टर सैफ अली खान को एमपी हाई कोर्ट से झटका लगा है। नवाबी परिवार की संपत्ति को लेकर कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें सैफ और उनकी फैमिली को उत्तराधिकारी बताया गया था। इसके अलावा सैफ की लगभग 15000 करोड़ रुपए की संपत्ति को दुश्मन की संपत्ति घोषित कर दिया गया है।
हमीदुल्लाह भोपाल रियासत के अंतिम शासक नवाब थे।
दरअसल, हमीदुल्लाह भोपाल रियासत के अंतिम शासक नवाब थे। उनकी और उनकी पत्नी मैमूना सुल्तान की तीन बेटियां थीं आबिदा, साजिदा और राबिया। साजिदा ने शादी कर ली। साजिदा ने इफ्तिखार अली खान पटौदी से शादी की और भोपाल की नवाब बेगम बन गईं। उनके बेटे, मंसूर अली खान पटौदी, जो भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान थे, उन्होंने शर्मिला टैगोर से शादी की। नवाब हमीदुल्लाह की सबसे बड़ी बेटी आबिदा के पाकिस्तान चले जाने के बाद, साजिदा इन संपत्तियों की मालिक बन गईं।
15 हजार करोड़ की संपत्ति
बाद में, उनके बेटे मंसूर अली खान पटौदी इन संपत्तियों के उत्तराधिकारी बन गए, जिसकी अनुमानित कीमत लगभग 15 हजार करोड़ रुपये है, जो सैफ अली और उनके भाई-बहनों को विरासत में मिली हैं। दो अपीलें, एक बेगम सुरैया राशिद और अन्य द्वारा दायर की गई, और दूसरी नवाब मेहर ताज साजिदा सुल्तान और अन्य द्वारा, जो सभी दिवंगत नवाब मोहम्मद हमीदुल्लाह खान के उत्तराधिकारी हैं, ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने उनके विरुद्ध दायर किए गए मुकदमों को खारिज कर दिया है, जिसे उन्होंने शाही संपत्ति का अनुचित विभाजन कहा था।
हाई कोर्ट ने आदेश निरस्त किया
अपनी दलीलों में उन्होंने कहा कि भोपाल जिला न्यायालय के 14 फरवरी, 2000 के फैसले और डिक्री ने उनके मुकदमों को अनुचित तरीके से खारिज कर दिया। उनके वकीलों ने दलील दी कि उनकी (नवाब की) निजी संपत्ति का बंटवारा मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार उनके और प्रतिवादी सैफ अली, शर्मिला और 16 अन्य उत्तराधिकारियों के बीच होना चाहिए था। अपीलकर्ताओं ने प्रतिवादियों (पटौदी) द्वारा 10 जनवरी, 1962 को भारत सरकार द्वारा साजिदा बेगम के पक्ष में जारी किए गए प्रमाण पत्र का हवाला देने का विरोध किया, जो सभी निजी संपत्तियों का एकमात्र उत्तराधिकारी है।
मामले को ट्रायल कोर्ट को वापस भेजा
न्यायमूर्ति द्विवेदी ने कहा कि मामले को नए सिरे से तय करने के लिए ट्रायल कोर्ट को वापस भेजा जाता है। अदालत ने आदेश दिया, और यदि आवश्यक हो, तो ट्रायल कोर्ट बाद के घटनाक्रम और बदली हुई कानूनी स्थिति के मद्देनजर पक्षों को आगे सबूत पेश करने की अनुमति दे सकता है। हाई कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने मामले के अन्य पहलुओं पर विचार किए बिना ही मुकदमों को खारिज कर दिया, वह भी उस फैसले पर भरोसा करते हुए जिसे पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने इसे निरस्त कर दिया है।