स्कूलों में न खेल मैदान और न ही बने शौचालय

कटनी। प्रदेश के प्राईमरी और मिडिल स्कूलों में न तो पीने की व्यवस्था है और न ही शौचालय और खेल मैदान की व्यवस्था भी नहीं है। निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों और शर्तों को आज 7 साल बाद भी राज्य सरकार पूरा नहीं कर पाई है। इसका एक उदाहरण स्कूलों में खेल मैदान के रूप में सामने आया है। जानकारी के मुताबिक प्रदेश के 44 हजार 754 स्कूलों में अभी भी खेल मैदान की व्यवस्था नहीं हैं, इसमे कटनी जिले के भी कई स्कूल शामिल है। ऐसा तब है, जब प्रदेश सरकार स्कूलों में खेल गतिविधियां अनिवार्य कर चुकी है। यह खुलासा सीएजी की रिपोर्ट में हुआ है। वहीं रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश के 5 हजार 176 सरकारी स्कूलों में पानी की सुविधा तक नहीं है। बच्चों को घर से पानी लेकर आना पड़ता है। पानी के अभाव में इन स्कूलों में शौचालय व्यवस्था पूरी तरह से ठप है, जबकि 7 हजार 180 स्कूलों में छात्रों और पांच 5 हजार 945 स्कूलों में छात्राओं के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं हैं। रिपोर्ट 30 नवंबर को विधानसभा में पेश हुई है।
1 लाख से ज्यादा प्राइमरी और मिडिल स्कूल
गौरतलब है कि प्रदेश में 1 लाख 14 हजार 255 सरकारी प्राइमरी और मिडिल स्कूल हैं। देश में 1 अप्रैल 2010 से आरटीई कानून लागू हुआ है। इसमें प्रावधान है कि कानून लागू होने के बाद 3 साल में सभी राज्यों को तमाम मापदंड पूरे करने पड़ेंगे, लेकिन राज्य सरकार कुछ विशेष नहीं कर पाई है। सीएजी ने सरकारी स्कूलों की वर्तमान परिस्थितियों पर तीखी टिप्पणी की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि कानून लागू होने के पहले से चल रहे सरकारी स्कूल मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं। सीएजी ने प्रदेश के 390 स्कूलों में अधोसंरचना की नमूना जांच की। इसके अलावा स्कूल शिक्षा विभाग के दस्तावेजों का परीक्षण भी किया, जिसके बाद ये स्थिति सामने आई है।
53 हजार स्कूल असुरक्षित
प्रदेश के 53 हजार 345 सरकारी स्कूल वर्तमान हालात में बच्चों के लिए सुरक्षित नहीं हैं। दरअसल इन स्कूलों में अब तक बाउंड्रीवॉल नहीं बनी है, इसलिए असामाजिक तत्वों का स्कूल के अंदर तक आना.जाना है। वर्तमान में बच्चों के अपहरण की घटनाएं भी सामने आ रही हैं। ऐसे में स्कूलों में बाउंड्रीवॉल न होना खतरनाक हो सकता है। इसमे कटनी जिले के भी कई स्कूल शामिल है, जहां न तो बाउण्ड्रीवॉल है और न ही सुरक्षा के इंतजाम।
स्कूलों में पुस्तकालय भी नहीं
10 हजार 763 ऐसे भी स्कूल हैं, जिनमें पुस्तकालय ही नहीं है। मुख्यमंत्री ने सभी स्कूलों में अनिवार्य रूप से पुस्तकालय शुरू करने के निर्देश दिए थे। वहीं 64 हजार 278 प्राइमरी और मिडिल स्कूलों में प्रधानाध्यापक के लिए अलग से कक्ष नहीं हैं। वे शिक्षकों के साथ बैठते हैं।