किस्सा मध्यप्रदेश की राजनीति का: छलांग लगाने बड़े तालाब तक पहुंच गए थे प्रभु

किस्सा मध्यप्रदेश की राजनीति का: छलांग लगाने बड़े तालाब तक पहुंच गए थे प्रभु। भोपाली के सूरमा की कहानियां बेजोड है। यह उस समय की बात है जब मई-जून 1967 में विधायकों के दल बदल के बाद मध्य प्रदेश में द्वारिका प्रसाद मिश्र की सरकार गिरने की कगार पर थी। श्यामाचरण शुक्ल द्वारिका प्रसाद मिश्र के विरोधी थे।
। प्रदेश का ये सियासी किस्सा आपको विस्तार से बताते हैं।
60 के दशक का है किस्सा
ये किस्सा 60 के दशक से जुड़ा है। उस समय मई-जून 1967 में विधायकों के दल बदल के बाद मध्य प्रदेश में द्वारिका प्रसाद मिश्र की सरकार गिरने की कगार पर थी। श्यामाचरण शुक्ल द्वारिका प्रसाद मिश्र के विरोधी थे।
जब मिश्र की सरकार गिर गई, तब प्रदेश में संविद सरकार बनी और गोविन्द नारायण सिंह संयुक्त विधायक दल की सरकार के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन बाद में वापस कांग्रेस में शामिल हो गए। जिसके बाद कुछ घटनाक्रम ऐसे कुए कि संविद सरकार भी गिर गई।
श्यामाचरण शुक्ल बने मुख्यमंत्री
संविद सरकार गिरने के बाद प्रदेश में दोबारा कांग्रेस की सरकार बनी और श्यामाचरण शुक्ल नई सरकार में मुख्यमंत्री बनाए गए। वहीं नई सरकार में मंत्री बनने के लिए विधायकों के बीच मारा-मारी भी शुरू हो गई। यहां तक की विधायक मंत्री बनने के लिए आत्महत्या तक की धमकी देने लगे थे।
बड़े तालाब पहुंच गए थे प्रभु नारायण टंडन
दीपक तिवारी अपनी किताब राजनीतिनामा मध्य प्रदेश 1956-2003 कांग्रेस युग में लिखते हैं कि इन विधायकों में से एक प्रभु नारायण टंडन को जब मालूम हुआ कि उनका नाम मंत्रियों की सूची में नहीं हैं तो वे आत्महत्या की धमकी देकर भोपाल स्थित बड़े तालाब पर छलांग लगाने के लिए चले गए। टंडन की यह योजना काम कर गई और उन्हें राज्य मंत्री बना दिया गया।
बीमार बताकर मंत्री बनाने से किया इनकार
इसी तरह एक और विधायक मोहम्मद बशीर खान थे। उन्हें भी मंत्री नहीं बनाया। इसके पीछे उनके बीमार होने का तर्क दिया गया। इस बात से मोहम्मद बशीर खान इतने नाराज हुए कि उन्होंने बयान दिया कि विधानसभा में वोट डालने के लिए स्ट्रेचर पर अस्पताल से लाया गया और मंत्री बनाने की बात कही, लेकिन अब स्वास्थ्य कारण से मंत्री नहीं बना रहे। खान के इस बयान के बाद उन्हें भी राज्य मंत्री बनाया गया।