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कांग्रेस में चुनाव के पहले हो रही जमावट का असली रहस्य क्या?

कटनी। चुनावी साल में दल बदलने का खाता कटनी में खुल चुका है। जनपद पंचायत कटनी के पूर्व अध्यक्ष और भाजपा नेता वेंकट निषाद ने कल राजधानी भोपाल में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव के हाथों कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली। उनके साथ कटनी जनपद पंचायत की उपाध्यक्ष अर्चना जायसवाल ने भी कांग्रेस का दामन थाम लिया। वेंकट निषाद भाजपा में शामिल होने से पहले कांग्रेस में ही थे। मंडी चुनाव में वे अपनी पत्नी श्रीमती रेखा निषाद को अध्यक्ष बनाना चाह रहे थे। तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें इस योजना में सफलता नही मिली तो कुछ ही दिनों बाद उन्होंने कांग्रेस से नाता तोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया था। उनके भाजपा प्रवेश में तब मुख्य भूमिका विधायक संदीप जायसवाल की मानी जा रही थी। इस बार फिर पाला बदलने के असल कारणों को लेकर सियासी हलकों में चर्चाओं का बाजार गर्म है।
प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं ऐसे में परस्पर प्रतिद्वंदी दलों कांग्रेस और भाजपा में गतिविधियां तेज हो चुकी हैं। दलों में दलबदल कोई नई बात नही है लेकिन चुनाव के वक्त यह सिलसिला और तेज हो जाता है। कटनी में इसकी शुरुआत हो चुकी है। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो आने वाले दिनों में कुछ और नामी चेहरे कांग्रेस में नज़र आ सकते हैं। भाजपा से टूटकर कांग्रेस का दामन थामने के इच्छुक नेताओं के नाम आजकल लोगों की जुबान पर हैं। कांग्रेस नेताओं के मुताबिक जनता में पकड़ और प्रभाव रखने वाले उन नेताओं की घर वापसी का निर्णय पार्टी आलाकमान ने ले लिया है जो पिछले चुनाव या उसके बाद अलग अलग वजहों से खिन्न होकर भाजपा और अन्य दलों का दामन थाम चुके थे। सूत्रों का कहना है ये नेता कांग्रेस से चले तो गए लेकिन भारतीय जनता पार्टी में महत्व न मिलने की वजह से उनका जल्द ही भाजपा से मोहभंग हो गया। भाजपा में जाने वाले कुछ नाम ऐसे हैं जो पूछ परख के अभाव में फिर से अपनी मूल पार्टी कांग्रेस में लौटने के इच्छुक हैं। कांग्रेस भी इन्हें अपनाने को लेकर किसी तरह के संशय में नही है। इसकी बानगी कल भोपाल में वेंकट निषाद की घर वापसी के तौर पर सामने आ चुकी है। गौरतलब है कि पिछले सप्ताह भोपाल में मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रभारी दीपक बावरिया ने स्पष्ट संकेत दिए थे कि कांग्रेस में नेताओं की घर वापसी का रास्ता खुला है।

उपेक्षित महसूस कर रहे थे निषाद
सूत्रों के मुताबिक पूर्व जनपद अध्यक्ष वेंकट निषाद भाजपा में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे थे। मंडी चुनाव में उनका दांव अपनी पत्नी रेखा निषाद को अध्यक्ष बनाने को लेकर था। तब वे कांग्रेस में थे। दांव फिट नही बैठा और संतोष राय मंडी अध्यक्ष बनने में सफल हो गए थे। वेंकट निषाद की इसके बाद कांग्रेस से दूरियां बढ़ने लगी। वे भाजपा में अपनी संभावना तलाशने लगे। सूत्र बताते हैं कि भाजपा के नजदीक जाने के पीछे भी उनकी मंशा संतोष राय को अविश्वास प्रस्ताव के जरिये हटाकर भाजपा समर्थित सदस्यों का समर्थन हासिल कर अपनी पत्नी की मंडी अध्यक्ष पद पर ताजपोशी थी। बताते हैं कि उनकी इस महत्वाकांक्षा को भांपकर क्षेत्रीय विधायक संदीप जायसवाल ने उन्हें भाजपा में आने का न्यौता दे दिया। वेंकट फौरन मां भी गए और कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया। इसके बाद उन्होंने दो-तीन बार मंडी अध्यक्ष संतोष राय को हटाने की योजना बनाई पर हर बार इसलिए सफल नही हो पाए क्योंकि तब तक जिले का राजनीतिक परिदृश्य पूरी तरह बदल चुका था। संजय पाठक के साथ संतोष राय भी कांग्रेस छोड़कर भाजपा के हो गए थे, ऐसे में भाजपा कैसे अपनी ही पार्टी के अध्यक्ष के खिलाफ लाये गए अविश्वास प्रस्ताव पर मुहर लग जाने देती। अंततः वेंकट निषाद की मंशा भाजपा में आने के बाद भी पूरी नही हो पाई और धीरे धीरे उनका भाजपा से मोहभंग होने लगा। भाजपा में उनकी कोई पूछ परख भी नही बची थी।

चर्चा यह भी
वेंकट की घर वापसी को राजनीतिक गलियारों में अलग अलग नजरिये से देखा जा रहा है। चर्चाओं के मुताबिक निषाद जिस नेता के इशारे पर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आये थे, उन्हीं के इशारे पर कांग्रेस में वापस लौटे। विधानसभा चुनाव के लिए टिकट की भागदौड़ शुरू हो चुकी है। मुड़वारा विधानसभा क्षेत्र को लेकर अब तक यही धारणा प्रचलित रही है कि यहां टिकट रिपीट नही होने पर ही पार्टी चुनाव जीत पाई है। भाजपा संगठन में पिछले एक साल में जो स्थितियां बदली हैं उसमें मौजूदा विधायक खुद को असहज पा रहे हैं। विजय शुक्ला के जमाना उन्हें पसंद था लेकिन बदले निजाम में पत्ते उनके हिसाब से न फेंटे जाने की वजह से संगठन से उनकी दूरी जग जाहिर है। मोर्चों और प्रकोष्ठों में हुई नियुक्तियों में भी उनकी पसंद को कोई खास तरजीह नहीं मिल पाने से इस बात को लेकर भी संशय है कि जिला संगठन से दोबारा टिकट के लिए उनकी वकालत हो पाएगी। सूत्र कहते हैं कि इसी आशंका के चलते उन्होंने खुद भी कांग्रेस में संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। शहर में चर्चा तेज है कि भाजपा से टिकट न मिलने की सूरत में वे अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि अपनी इसी योजना के तहत वे कांग्रेस के बड़े नेताओं के संपर्क में हैं। वेंकट निषाद का जाना कांग्रेस में उनकी टीम की शुरूआती जमावट ही माना जा रहा है। आने वाले दिनों में और भी लोग पाला बदल लें तो कोई आश्चर्य नहीं। कांग्रेस भी उनकी घर वापसी चाहती है। सूत्रों के मुताबिक मौजूदा विधायक की सारी चुनावी तैयारी दोनों तरह की संभावना को लेकर चल रही हैं। टिकट मिलने के हिसाब से भी और कटने के हिसाब से भी। उधर इस बदलाव से भाजपा भी चौकन्नी है। करीब तीन दर्जन असंतुष्ट भाजपाई राडार पर हैं। इन पर संगठन की नज़र है।

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