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मजबूरी: मिट्टी के बिस्किट खाकर जिंदा रहने की जंग लड़ रहे हैं इस देश के लोग

मल्टीमीडिया डेस्क। दुनियाभर में कई लोगों के पास खाने के इतने विकल्प हैं कि वे अक्सर अपनी प्लेट में जूठा छोड़ देते हैं। यूनाइटेड नेशन्स के फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन के अनुमान के मुताबिक, करीब 1.3 अरब टन खाने योग्य चीजें कचरे में फेंक दी जाती हैं। यह दुनियाभर में कई करोड़ लोगों का पेट भर सकती हैं।

मगर, लैटिन अमेरिकी देश हैती की बात करें, तो यहां गरीबी इतने चरम स्तर पर है कि लोग मिट्टी के बिस्किट बनाकर खाने को मजबूरी हैं। यहां लोगों की औसत आय दो डॉलर यानी करीब 120 रुपए से भी कम है। फल, दूध और अन्य खाने की चीजें लोगों के लिए सपना हैं। इन चीजों को यहां रईसी की चीज मानी जाती है।

पोषक भोजन को खरीद पाने में असमर्थ लोग मिट्टी और कीचड़ खाकर अपना पेट भरने के लिए मजबूर हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके कारण उनके स्वास्थ्य पर काफी प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कुपोषण का शिकार होने के साथ ही वे बैक्टीरिया और मिट्टी से होने वाले रोगों के शिकार हो रहे हैं।

हैती के लोग लंबे समय से भुखमरी से जूझ रहे हैं। आपको ये जानकर हैरानी होगी कि भुखमरी से जुझ रहे ये लोग मिट्टी के बिस्किट और गंदगी खाकर जिंदा हैं। करीब तीन लाख लोगों के पास खाने के लिए न तो पैसे हैं और न ही कोई सामग्री होती है।

हालांकि, इस देश के 10 प्रतिशत लोग देश की आय का 70 प्रतिशत आय कमाते हैं, लेकिन बाकी के 90 फीसद लोगों की औसत आय 120 रुपए रोजाना से कम है।

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यही कारण है कि कुपोषण से बचने के लिए ये लोग किचड़ से बने बिस्किट खाकर अपना पेट भर लेते हैं।

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हैती के लोग पहाड़ी मिट्टी में पानी और वनस्पति तेल मिलाकर उन्हें बिस्किट की तरह बनाकर धूप में सुखा लेते हैं। जब उनके पास खाने को कुछ नहीं होता, तो वे यही बिस्किट खाकर पेट भरते हैं।

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मिट्टी से बने इस बिस्किट को यहां कि आम भाषा में ‘बोन-बोन टैरेस’ कहा जाता है, जिसका मतलब होता है कीचड़ के बिस्किट। इसे बनाने वाली एक महिला ने बताया कि इन बिस्किट्स में भरपूर मात्रा में कैल्शियम और विटामिन्स होते हैं।

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