इसी बहाने

संस्कारी पकौड़े की बढ़ती लोकप्रियता से बिल्कुल भी विचलित न होना

इसी बहाने(आशीष शुक्‍ला)। यूँ तो हर सुबह मैं घर से निकलता हूं तो प्रातः स्मरणीय परम् श्रद्धेय पकौड़े जी के दुकान और खुंचों, ठेलों पर वातावरण को लजीज बनाती खुशबू से मन आनंदित हो जाता है। घर पर भी अक्सर पकौड़ों की यह खुशबू सुगंध्यमान होकर सिर्फ पारिवारिक जनों ही नहीं अपितु संपूर्ण मोहल्ले को प्रफुल्लित करती है।

पकौड़े हमारे देश की वह पुरातन संस्कृति है, जिसे हम पर ही नहीं समूची दुनिया को गर्व है। पकौड़े का यह परिष्कृत रूप अक्सर अभी आलूबंडा तो कभी ब्रेड पकौड़ा कभी समोसा तो कभी वड़ापाव के रूप में मुख्य पकौड़े के सुंदर रूप पर अतिक्रमण करता नजर आता है।

पकौड़ा संस्कृति हमारे देश की वह गौरवशाली परम्परा है, जिसका पालन हर देशवासी पूर्ण श्रद्धा और आस्था के साथ करते हैं। मेहमानवाजी के लिए अतिथि देवो भवः की परंपरा के निर्वहन में पकौड़े की आत्मीय उपस्थिति अतिथियों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए पर्याप्त रहती है। कभी हम स्वप्न में भी नहीं सोच सकते कि हम अपने पकौड़े को भूल जायें.. तब तो फिल्मी गीत याद आता है कि मैं जिस दिन भुला दूं तेरा प्यार दिल से…….तो फिर जब इस देश के एक से बढ़कर एक पकवानों की श्रंखला में आज भी स्वदेशी पकौड़े का इतना महत्व है तो फिर इसके नाम लेने पर इतना हंगामा क्यूं बरपा।

माननीय ने तो पकौड़े को सम्मान देने की कोशिश ही कि थी फिर आखिर सब बेचारे पकौड़े के पीछे ही क्यों पड़ गए? वैसे एक बात तो तय है कि हमारे देश के व्यजनों की लंबी कतार में आज पकौड़ा शीर्ष पर पहुंच कर अन्य व्यंजनों के सामने काफी इतरा रहा है। इतराये भी क्यों न, आखिर देश के मीडिया में चर्चा है तो सिर्फ उसी की।

yashbharat

चायनीज, कांटिनेंटल और तमाम व्यंजनों ने पिछले कुछ समय से सीधे-सादे पकौड़े को जी भर कर चिढ़ाया। आज इन सब से बदला लेने की बारी है। मैं तो सोचता हूं कि भारतीय व्यंजनों समोसा, कचोरी, लड्डू, इमरती, बालूशाही, मुंगौड़ी और इस तरह के तमाम चर्चित संस्कारी व्यंजनों को पकौड़े की बढ़ती लोकप्रियता से बिल्कुल भी नाराज नहीं होना चाहिये, बल्कि अपनी इस महत्ता को बनाना चाहिए कि कल उनके भी चर्चे पकौड़े की तरह सरे आम हों। देश ही क्या दुनिया की मीडिया में उनकी बात आये और कम से कम दुनिया जाने तो की हमारे भारतीय परंपरागत व्यजनों में कितनी ताकत है, जो देश मे सत्ता और विपक्ष के लिए चर्चा का मुद्दा बन सकता है।

तमाम ज्वलनशील मामलों को भुला सकता है। आर्थिक मामले से लेकर सीमा के तनाव को कम कर सकता है। शहीद होते जवान की शहादत को भुला सकता है। यही तो इस देश की ताकत है, जहां पकौड़े के एक शब्द से भूचाल आ सकता है। बजट से फायदे नुकसान पर चिंतन की जगह गली-गली कहीं समर्थन तो कहीं विरोध में पकौड़े तले जा सकते हैं।

पकौड़े तल कर विरोध जताने वाले किसी को नीचा दिखाए या नहीं किन्तु वह उस पकौड़े का तो अपमान कर रहे हैं जो मूक दर्शक बन कर बेचारा गरीबों की भूख मिटाने या फिर जुबान का जायका बढ़ाने के लिए हर समय तत्पर रहता है। सदियों से पकौड़े ने आम जनता की गरीबी का दर्द महसूस किया है महंगाई के बावजूद उसने गरीबों के हित मे स्वयं की समर्पित किया है।

पिज्जा और चाउमीन, मंचूरियन के चायनीज अतिक्रमण का डट कर मुकाबला किया है। आज इसे आखिर क्यों मजाक बनाया जा रहा है, समझ से परे है। खैर कहते हैं जो होता है अच्छे के लिए होता है। जनता भी जानती है ठोस मुद्दों के अभाव में अक्सर अर्ध ज्ञानी रत्न को पत्थर बताने से बाज नहीं आते। पकौड़े पर राजनीति का यह ड्रामा भी कल समाप्त हो जाएगा पर इससे पकौड़े का क्या बिगड़ेगा? यह तो केवल हमारे माननीयों के दिमागी स्तर को दर्शायेगा।

समय बदलते देर नहीं लगता, आज पकौड़े का वक्त है तो उससे भी सीखने की जरूरत है, कि वह किस तरह बेशन में लिपटकर गर्म तेल से गुजर कर हमारा जायका बढ़ाता है। अरे सीखना ही है तो पकौड़े के त्याग को सीखो की किस तरह दुनिया के इस भौतिकवादी युग मे भी वह अपनी ताकत और महत्ता बनाये रखा है। राजनीति करने वालों कम से कम उन गरीबों का अपमान तो बन्द करो जिनका आज इसी पकौड़े से परिवार चल रहा है। देश में मुद्दों की कमी नहीं है, क्यों बेचारे पकौड़े को अपनी राजनीति में शामिल करके जनता को बेवकूफ बना रहे हो।

Leave a Reply

Back to top button